स्वतंत्रता का अधिकार
आप इस बात से सहमत होंगे कि स्वतंत्रता प्रत्येक प्राणी की सबसे महत्त्वपूर्ण इच्छा होती है। मानव जाति के लिए निश्चित रूप से स्वतंत्रता अपेक्षित और आवश्यक है। आप भी स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहते हैं। भारत के संविधान में सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। ये अधिकार अनुच्छेद 19 से लेकर अनुच्छेद 22 में उल्लिखित हैं। अधिकारों की निम्नलिखित अनुच्छेद 19 नागरिक अधिकारों के रूप में छः प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है जो केवल भारतीय नागरिकों को ही उपलब्ध हैं।इनमें शामिल है- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, संघ अथवा संगठन बनाने की स्वतंत्रता, अबाध आवागमन की स्वतंत्रता,भारत के किसी भी भाग में रहने और निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता। संविधान के निर्माताओं द्वारा महत्वपूर्ण माने गए व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी देने की दृष्टि से स्वतंत्रता के अधिकार को अनुच्छेद 19 से 22 में शामिल किया गया है और इन अनुच्छेदों में कुछ प्रतिबंध भी शामिल हैं जिन्हें विशेष परिस्थितियों में राज्य द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर लागू किया जा सकता है। अनुच्छेद 19 नागरिक अधिकारों के रूप में छः प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है जो केवल भारतीय नागरिकों को ही उपलब्ध हैं। इनमें शामिल हैं भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, संघ अथवा संगठन बनाने की स्वतंत्रता ,भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता,अबाध आवागमन की स्वतंत्रता,भारत के किसी भी भाग में रहने और निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता। ये सभी स्वतंत्रताएं अनुच्छेद 19 में ही वर्णित कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन होती हैं, जिन्हें राज्य द्वारा लागू किया जा सकता है। नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त उपरोक्त अधिकार निरपेक्ष नहीं है। उन पर कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंध लागू हैं। इनमें शामिल हैं राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, अपराधों को भड़काना और मानहानि। आम जनता के हित में किसी व्यापार उद्योग या सेवा का राष्ट्रीयकरण करने के लिए राज्य को भी सशक्त किया गया है। अनुच्छेद 19 द्वारा गारंटीशुदा स्वतंत्रताओं की अनुच्छेद 20 से 22 द्वारा रक्षा की जाती है। इन अनुच्छेदों के विस्तार पर विशेष रूप से निर्धारित प्रक्रिया के सिद्धांत के संबंध में संविधान सभा में भारी बहस हुई थी। विशेष रूप से यह तर्क दिया कि ऐसे प्रावधान को लागू होने से सामाजिक कानूनों में बाधा आएगी तथा व्यवस्था बनाए रखने में प्रक्रियात्मक कठिनाइयां उत्पन्न होंगी, इसलिए इसे पूरी तरह संविधान से बाहर ही रखा जाए। संविधान सभा ने अंततः निर्धारित प्रक्रिया शब्दों को हटा दिया और उनके स्थान पर कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को शामिल कर लिया। अनुच्छेद 20 में अपराधों के लिए दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण दिया गया है। अनुच्छेद 21 जो विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार होने वाली कार्यवाही को छोड़ कर जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता में राज्य के अतिक्रमण से बचाता है , हालांकि 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के संरक्षण को विधायी कार्यवाही तक बढ़ाते हुए निर्णय दिया कि किसी प्रक्रिया को निर्धारित करने वाला कानून उचित, निष्पक्ष और तर्कसंगत होना चाहिए। अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन का अर्थ मात्र एक जीव के अस्तित्व से कहीं अधिक है ,इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार तथा वे सब पहलू जो जीवन को अर्थपूर्ण तथा जीने योग्य बनाते हंै । अनुच्छेद 21 के अंदर अनेक अधिकारों को शामिल करते हुए इसकी सीमा का विस्तार किया है जिनमें शामिल हैं आजीविका, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य, अदालतों में त्वरित सुनवाई तथा कैद में मानवीय व्यवहार से संबंधित अधिकार। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 के 86वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21 में मौलिक अधिकार बनाया गया है। अनुच्छेद 22 गिरफ्तार हुए और हिरासत में लिए गए लोगों को विशेष अधिकार प्रदान करता है विशेष रूप से गिरफ्तारी के आधार सूचित किए जाने, अपनी पसंद के वकील से सलाह करने, गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने और मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना उस अवधि से अधिक हिरासत में न रखे जाने का अधिकार। संविधान राज्य को भी अनुच्छेद 22 में उपलब्ध रक्षक उपायों के अधीन कानून बनाने के लिए अधिकृत करता है।
IV कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध के संरक्षण – जैसा कि अनुच्छेद 22 में दिया गया है कि किसी व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है, ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा प्रतिरूद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रूचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरूद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जायेगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अविध के लिए अभिरक्षा में निरूद्ध नहीं रखा जाएगा। निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन गिरफ्तार या व्यक्ति को तीन माह की अवधि के भीतर सलाहकार बोर्ड के समक्ष पेश किया जाएगा।
क्या आप जानते हैं
1. क्या होगा यदि राज्य युक्तियुक्त प्रतिबंधों के नाम पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग
करने लगे? संविधान अनुसार युक्तियुक्त प्रतिबंध के मामले का निपटारा केवल
न्यायालय कर सकते हैं, सरकार नही।
2. विदेशियों निवासियों द्वारा केवल कुछ मूलाधिकारों का ही प्रयोग किया जा सकता है
सभी का नहीं। उदाहरणार्थ कानून के समक्ष समानता का अधिकार तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार विदेशियों को भी प्राप्त हैं परंतु अन्य मूलाधिकार विशेष रूप से भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त हैं।
1. भारतीय संविधान द्वारा कौन–सी स्वतंत्रताएं प्रदान की गयी हैं?
2. निम्नलिखित मामलों में कौन–सी स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ है?
(i) राज्य नीति द्वारा विशेष राजनीतिक दल के नेता को बिना किसी के सीमापार
कर राज्य में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती है।
(ii) कामगारों को संगठित होकर अपनी मांगों को प्रदर्शित करने का अधिकार नहीं देना।
(iii) लोगों को अपने राज्य को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाने के लिए दबाव डाला जाये।
(iv) मोची के बेटे को गांव में मिठाई की दुकान खोलने की अनुमति नहीं दी जाती।
(v) किसी राजनीतिक दल को सार्वजनिक सभा करने की अनुमति नहीं दी जाती।अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्ितयुक्त निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्ट्र-राज्य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- वाह्य या आंतरिक आपातकाल या राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अभिव्यक्ित की स्वंतत्रता सीमित हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौमिक मानवाधिकारों के घोषणा पत्र में मानवाधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसके अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा जिसके तहत वह किसी भी तरह के विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को स्वतंत्र होगा।
3. अपराधों के लिए दोषसिद्धि, प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण तथा गिरफ्तारी एवं निरोध से संरक्षण के लिए संविधान में क्या उपबंध किये गये हैं।
नीचे संविधान द्वार नागरिकों को दी जाने वाली स्वतंत्रताएं तथा राज्य द्वारा लगाये जाने वाले प्रतिबंध दिये गये है। स्वतंत्रता की युक्तियुक्त प्रतिबंध दिये गये है। स्वतंत्रता का युक्तियुक्त प्रतिबंध के साथ मिलान कीजिए। क्या आप मानते हैं कि ये प्रतिबंध उचित हैं? अपने विचार के पक्ष में कारण दीजिए।
स्वतंत्रताएं |
युक्तियुक्त प्रतिबंध |
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1. |
विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता |
(अ) |
हिंसा को भड़काने के लिए व्यक्ति/ समूहों के भ्रमण पर प्रतिबंध |
2. |
संघ और संगठन बनाने की स्वतंत्रता |
(ब) |
जुआ, वेश्यावृत्ति, नशीले पदार्थ के व्यापार जैसे कारोबार की अनुमति नहीं देना। |
3. |
शांतिपूर्वक और बिना हथियार सभा और सम्मेलन की स्वतंत्रता |
(स) |
हवाई अड्डे के पास निवास स्थान के लिए मनाही |
4. |
भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता |
(द) |
लोगों में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाली भाषा के प्रयोग पर प्रतिबंध |
5. |
भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतंत्रता |
(य) |
आतंकवादी गतिविधियों की सहायता करने के लिए संगम के निर्माण की मनाही |
6. |
कोई वृत्ति, आजीविका, व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता |
(र) |
शंतिपूर्वक तथा बिना हथियार भाग लेना |
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