धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
जैसा कि आप जानते हैं, प्रस्तावना के एक उद्देश्य के रूप में “नागरिकों के लिए विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त करने” की घोषणा की गयी है। चूंकि भारत में अनेक धर्म है, जहाँ हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई तथा अन्य समुदाय साथ–साथ रहते हैं, संविधान में भारत को ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ घोषित किया गया है। इसका अर्थ है कि भारत राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। परंतु नागरिकों को अपनी पसंद से किसी भी धर्म को मानने और पूजा करने की स्वतंत्रता दी गयी है। परंतु इससे अन्य लोगों के धार्मिक विश्वासों अथवा आराधना पद्धतियों में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यह स्वतंत्रता विदेशियों को भी प्राप्त है। धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में संविधान में अनुच्छेद 25-28 में उपबंध किये गये हैं :
1. अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबोध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने
की स्वतंत्रता : सभी व्यक्तियों को अन्तःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप
से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार है। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि बल पूर्वक अथवा लालच देकर किसी एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का धर्म परिवर्तन कराया जाये। साथ ही, कुछ अमानवीय, गैरकानूनी तथा अंधविश्वासी चलन पर रोक लगा दी गयी है।
देवी–देवताओं तथा किसी आलौकिक शक्तियों को प्रसाद स्वरूप पशुबलि या नरबलि जैसे
चलन पर रोक लगा दी गयी है। इसी तरह, सती प्रथा के नाम पर विधवा को अपने पति
के शव के साथ (इच्छा से अथवा बलपूर्वक) जिंदा जलाने पर भी रोक लगा दी गयी है। विधवाओं क दूसरी शादी की अनुमति नहीं देना अथवा सिर का मुण्डन करना अथवा सफेद कपड़े पहनने पर मजबूर करना अन्य सामाजिक बुराई है जो धर्म के नाम पर बलपूर्वक की जा रही है। ऊपर उल्लेखित प्रतिबंधों के अलावा राज्य के पास धर्म से जुड़ी हुई आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक अथवा अन्य पंथनिरपेक्ष गतिविधियों को संचालित करने की शाक्ति होती है। लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के आधार पर राज्य द्वारा इस अधिकार पर प्रतिबंध भी लगाये जा सकते हैं।
2. धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता : लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को (क) धार्मिक और परोपकारी प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और संचालन का (ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का (ग) चल–अचल सम्पत्ति के अर्जन और स्वामित्व का और (द) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा।
3. किसी विशिष्ट धर्म को बढ़ावा देने के लिए करों के भुगतान बारे में स्वतंत्रता : किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का भुगतान करने के बाध्य नहीं किया जाएगा जिससे किसी
विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय को बढ़ावा देने या संचालन पर व्यय करने के लिए विशेष तौर पर उपयोग किया जाय।
अनुच्छेद 25 – प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप में मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है।
अनु. 25 के ही तहत सिक्ख धर्म के लोग कृपाण धारण करते है।
अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबन्धन करने की स्वतंत्रता दी गयी है।
अनुच्छेद 27 – किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए विवश नहीं किया जायेगा, जिसकी आय को किसी विशेश धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय की अभिवृद्धि के लिए व्यय किया जाता है।
अनुच्छेद 28 – राज्य निधि से पूर्णतः पोशित शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा दिये जाने का निशेध करता है। ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुश्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात् सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते ।
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से सांप्रदायिक संघर्ष समय-समय पर भारत को त्रस्त करते रहे हैं। इन संघर्षों की जड़ें मुख्यतः बहुसंख्यक हिंदू तथा अल्पसंख्यक मुसलमान समुदायों के कुछ तबकों के बीच निहित तनाव में हैं, जो भारत के विभाजन के दौरान होने वाले खूनी संघर्ष और ब्रिटिश राज के तहत उभर कर सामने आया था। ये संघर्ष हिंदू राष्ट्रवाद बनाम इस्लामी कट्टरवाद और इस्लामवाद की परस्पर प्रतिस्पर्धी विचारधाराओं के कारण भी उत्पन्न होता है; ये दोनों विचारधाराएं हिंदुओं तथा मुसलमानों के कुछ तबकों में व्याप्त हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अन्य प्रमुख नेताओं के साथ महात्मा गांधी और उनके “शांति सैनिकों ” ने बंगाल में शुरुआती धार्मिक संघर्ष को दबाने के लिए काम किया, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा 16 अगस्त 1946 को शुरू किये गए डायरेक्ट एक्शन डे के फलस्वरूप कलकत्ता (जो अब पश्चिम बंगाल में है) तथा नोआखाली जिले (जो वर्तमान के बंगलादेश में है) में शुरू होने वाले दंगे शामिल हैं। इन संघर्षों में मुख्यतः पत्थरों और चाकुओं का इस्तेमाल किया गया और व्यापक स्तर पर लूटपाट और आगजनी भी की गयी, जिससे पता लगता है कि यह काम अनाड़ी लोगों का था। विस्फोटक और हथियार का इस्तेमाल किये जाने की संभावना काफी कम थी क्योंकि भारत में उनका मिलना काफी मुश्किल था।
स्वतंत्रता पश्चात के प्रमुख सांप्रदायिक संघर्षों में शामिल हैं, 1984 के सिक्ख विरोधी दंगे, जो भारतीय सेना के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद चालू हुए थे। हरमंदिर साहिब के भीतर छुपे सिक्ख आतंकवादियों के खिलाफ भारी मात्रा में गोला-बारूद, टैंकों तथा हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया जिससे सिक्खों के पवित्रतम गुरूद्वारे को काफी नुकसान पहुंचा। भारतीय सेना ने इस हमले में जरनैल सिंह भिंडरांवाले को मार गिराया; इस हमले में कुल मिलाकर लगभग 3000 सैनिकों, आतंकवादियों, तथा सामान्य नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था इससे क्रोधित होकर इंदिरा गांधी के सिक्ख अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी, जिसके परिणामस्वरूप चार दिनों तक सिक्खों का कत्ले-आम किया गया। कुछ अनुमानों के अनुसार 4000 से अधिक सिक्ख मारे गए थे। अन्य घटनाओं में शामिल हैं – अयोध्या विवाद के परिणामस्वरूप बाबरी मस्जिद का विध्वंस किये जाने के बाद 1992 में मुंबई में होने वाले दंगे; और गोधरा ट्रेन कांड के बाद 2002 के गुजरात दंगे जिनमें 2000 से अधिक मुसलमानों को मार दिया गया था।कई आतंकवादी गतिविधियों के लिए सांप्रदायिकता को दोषी ठहराया जाता है, जैसे कि 2005 में अयोध्या में जन्मभूमि पर होने वाला हमला, 2006 में वाराणसी बम विस्फोट, 2006 में जामा मस्जिद विस्फोट और 11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेन बम धमाके. कई कस्बों और गांवों को छोटी-मोटी घटनाएं त्रस्त करती रही हैं; जिसमें से एक उदहारण स्वरुप, उत्तर प्रदेश के मऊ में हिंदुओं द्वारा अपने एक त्यौहार का उत्सव मनाने के कारण भड़कने वाले हिंदू-मुस्लिम दंगे में पांच लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
वर्ष | राइअट | राज्य / प्रान्त | कारण | परिणाम |
---|---|---|---|---|
एंटी सिख राइअट | दिल्ली | इंदिरा गांधी की हत्या | 2,700 सिख मारे गए | |
बॉम्बे राइअट | मुंबई | बाबरी मस्जिद का विध्वंस | 900 लोग मारे गए | |
गुजरात राइअट | गुजरात | गोधरा ट्रेन बर्निंग | 1,044 लोग मारे गए, 790 मुसलमान और 254 हिन्दू (गोधरा ट्रेन फायर में मारे लोगों के सहित) | |
कन्धमाल राइअट | कन्धमाल जिला, ओड़िशा | स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या | 20 मारे गए और 12,000 लोग विस्थापित |
- धर्मनिरपेक्षता का यह अर्थ नही है कि राज्य का धर्म के प्रति शत्रुभाव है. अर्थ यह है कि राज्य को विभिन्न धर्मों के बीच तटस्थ रहना चाहिए.
- प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने और उस पर आचरण करने की स्वतंत्रता है. यह तर्क मान्य नही है कि यदि कोई व्यक्ति निष्ठावान हिन्दू या निष्ठावान मुस्लिम है तो वह धर्मनिरपेक्ष नही रह जाता.
- यदि धर्म का उपयोग राजनैतिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है और राजनैतिक दल अपने राजनैतिक प्रयोजनों के लिए उसका आश्रय लेते हैं तो इससे राज्य की तटस्थता का उलंघन होगा. धर्म के आधार पर निर्वाचकों से अपील करना धर्मनिरपेक्षीय लोकतंत्र के विरुद्ध है. राजनीति और धर्म को मिलाया नही जाना चाहिए. यदि कोई राज्य सरकार ऐसा करती है तो उसके विरुद्ध संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन कार्रवाई उचित होगी. अतः इस अर्थ में धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूलभूत लक्षण होगी.
Leave a Reply